बेगम अख्तर स्मृति समारोह ‘यादें’ 2023-24

उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी, लखनऊ द्वारा मलिका-ए-तरन्नुम पद्मभूषण बेगम अख्तर की स्मृति में दिनांक 30 अक्टूबर, 2023 को ‘‘यादें’’ शीर्षक से गज़ल ठुमरी गायन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस समारोह में मुख्य अतिथि, संस्कृति एवं पर्यटन उ0प्र0 प्रमुख सचिव श्री मुकेश कुमार मेश्राम तथा प्रमुख सचिव डॉ0 हरिओम, अतिथि भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो0 माण्डवी सिंह, विशेष सचिव श्री राकेश चन्द्र शर्मा, राजा मान सिंह तोमर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.साहित्य कुमार नाहर, तथा अकादमी की पूर्व अध्यक्ष डॉ. पूर्णिमा पाण्डेय उपस्थित रहीं। अकादमी के निदेशक शोभित कुमार नाहर ने आमंत्रित मुख्य अतिथि का स्वागत अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह देकर किया।

दीप प्रज्जवलन के उपरान्त सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरूआत करते हुए डॉ0 साधना रहटगांवकर, (रायपुर, छत्तीसगढ़) ने पद्मभूषण बेग़म अख़्तर की चुनिंदा गज़ल “हमरी अटरिया पे आजा रे सांवरिया, देखा देखी बलम होई जाये” और “ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया” सुनाकर शाम को यादगार बना दिया। इसके पश्चात मुनव्वर राना की रचना “बुलन्दी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है” सुनाकर शाम का आगाज किया। इस सिलसिले को बढ़ाते हुए उन्होंने वसीम बरेलवी की रचना “अपने चेहरे से जो जाहिर है छुपाएँ कैसे, तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे” और हमीद अलमास की लोकप्रिय गजल “यूँ भी क्या था और अब क्या रह गया, मैं अकेला था अकेला रह गया” सुनायी। खासतौर से उन्होंने अख़्तर नज्मी की रचना “जाइए कोई तमाशा नहीं होने वाला” और अली अहमद जलाली की रचना “अब छलकते हुए सागर नहीं देखे जाते, तौबा के बाद ये मंजर नहीं देखे जाते” सुनायी जिसे श्रोताओं द्वारा बहुत ही सराहा गया।